त्रेता युग (Treta Yuga) की अवधारणा ,प्रतीकात्मकता और भगवान् विष्णु के 3 अवतार
हिंदू धर्मशास्त्रों में त्रेता युग (Treta Yuga) की अवधि 12,96,000 वर्ष बताई गई है। वैज्ञानिक अध्ययन इसे कालचक्र (Cyclical Time) या खगोलीय प्रतीक मानते हैं, जो केवल कैलेंडर समय नहीं बल्कि सभ्यता के विकास-चरणों का संकेत है।

भौगोलिक, प्राकृतिक व मानव विकास
त्रेता युग(Treta Yuga) की पहचान सामाजिक स्थिरता और समृद्धि से होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह युग कृषि, नगर सभ्यता और राज्य-व्यवस्थाओं के विकास का समय रहा हो सकता है, जब जलवायु भी संतुलित थी। इसी दौरान मानव की आयु और शारीरिक क्षमता में सतयुग की तुलना में कमी आई, जो बदलते खानपान व सामाजिक ढांचे से जुड़ी है।
नैतिकता, समाज व तकनीक
धर्म के केवल तीन स्तंभ शेष थे – सत्य, दया व तप। सत्ता-संघर्ष, असमानता व युद्ध की प्रवृत्ति इसी युग में बढ़ी, साथ ही धातु-युग की शुरुआत भी यहीं मानी जाती है।
खगोल-आधारित व्याख्या
त्रेता युग(Treta Yuga) की अवधारणा पृथ्वी की ध्रुवीय चाल (axial precession) जैसी खगोलीय घड़ियों से जुड़ी मानी जाती है (लगभग 25,920 वर्ष का एक चक्र)
इस प्रकार त्रेता युग (Treta Yuga)में पृथ्वी लोक पर सनातन परम्पराओं और मान्यताओं में भगवान् विष्णु (Vishnu deity) ने सृष्टि में संतुलन बनाए रखने और धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया । Vishnu Sahasranamam और Vishnu Sahasra में विष्णु भगवान के अनगिनत नाम और उनके दिव्य गुणों का वर्णन मिलता है।त्रेता युग, जिसे दूसरा युग कहा जाता है, विशेष इसलिए है क्योंकि इस युग में भगवान विष्णु ने तीन महत्वपूर्ण अवतार लिए – वामन अवतार, परशुराम अवतार और राम अवतार।
इन तीनों Vishnu avatars की कथाये न केवल अधर्म का नाश किया बल्कि मानव जीवन को गहरे संदेश भी देती है ।आइए विस्तार से इनके बारे में जानें।
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वामन अवतार – दान और नीति से ब्रह्मांड की रक्षा
वामन अवतार भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार और त्रेता युग(Treta Yuga) का पहला अवतार माना जाता है।
कथा:
राजा बलि, दानवीर और तपस्वी असुर राजा थे। अपने यज्ञ और तप से उन्होंने देवताओं को परास्त कर दिया और तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। यद्यपि वे न्यायप्रिय और दानवीर थे, फिर भी उनका अत्यधिक प्रभाव सृष्टि के संतुलन को बिगाड़ रहा था।

देवताओं ने विष्णु जी से सहायता मांगी। तब भगवान ने वामन अवतार लिया – एक बौने ब्राह्मण बालक का रूप।
- वामन देव राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुँचे।
- उन्होंने भिक्षा में केवल तीन पग भूमि मांगी।
- बलि जैसे दानवीर ने बिना सोचे-समझे यह वरदान दे दिया।
फिर क्या हुआ:
- पहले पग में वामन ने पूरी पृथ्वी नाप ली।
- दूसरे पग में पूरा आकाश।
- तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा तो राजा बलि ने स्वयं अपना सिर अर्पित कर दिया।
भगवान ने उन्हें पाताल लोक भेज दिया लेकिन यह आशीर्वाद दिया कि वे यज्ञ और दान के प्रतीक बनकर अमर रहेंगे।
संदेश:
- यह अवतार हमें सिखाता है कि शक्ति से अधिक बुद्धि और नीति बलवान होती है।
- कभी-कभी युद्ध बिना शस्त्र उठाए भी जीता जा सकता है।
- राजा बलि की भक्ति और दानशीलता ने उन्हें आज भी अमर बना दिया है।
👉 Vishnu Sahasranamam में वामन अवतार का स्मरण “त्रिविक्रम” नाम से किया गया है।
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परशुराम अवतार – अन्याय के विरुद्ध संघर्ष
परशुराम अवतार भगवान विष्णु का छठा अवतार और त्रेता युग(Treta Yuga) का दूसरा अवतार है।
परशुराम को ब्राह्मण होते हुए भी योद्धा स्वरूप में जाना जाता है। वे ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे।
कथा:
क्षत्रियों का अत्याचार बढ़ गया था। एक समय कुछ क्षत्रियों ने परशुराम के पिता की हत्या कर दी। इससे क्रोधित होकर परशुराम ने शपथ ली –
“मैं 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन कर दूँगा।”

- परशुराम भगवान शिव के भक्त थे।
- उन्हें शिव जी से वरदानस्वरूप पिनाका धनुष और परशु (कुल्हाड़ी) प्राप्त हुई।
- वे अद्वितीय योद्धा और तपस्वी दोनों थे।
मिथिला के राजा जनक के दरबार में भी परशुराम का प्रसंग प्रसिद्ध है। जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह उसी वीर से करने का संकल्प लिया था जो शिव के धनुष को उठा सके। बाद में भगवान राम ने यही धनुष तोड़ा और सीता से विवाह किया।
संदेश:
- यह अवतार हमें सिखाता है कि अन्याय और अधर्म का अंत करने के लिए शस्त्र का प्रयोग भी आवश्यक हो सकता है।
- समाज तभी सुरक्षित रहता है जब हर वर्ग संतुलन में रहे।
- परशुराम अवतार का एक और संदेश यह है कि क्रोध को धर्म की रक्षा के लिए सही दिशा में लगाना चाहिए।
👉 Vishnu Sahasra में परशुराम को “भृगुपति” और “जमदग्निनन्दन” नामों से संबोधित किया गया है।
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राम अवतार – मर्यादा पुरुषोत्तम
राम अवतार भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार और त्रेता युग(Treta Yuga) का तीसरा अवतार है।
राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ और महारानी कौशल्या के घर हुआ।
कथा:
राम को “मर्यादा पुरुषोत्तम” कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में आदर्श और मर्यादा का पालन किया।

- पिता के वचन को निभाने के लिए उन्होंने 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया।
- वनवास के दौरान उनकी पत्नी सीता का अपहरण रावण ने किया।
- हनुमान और वानर सेना की सहायता से राम ने रावण का वध किया और सीता को वापस लाए।
- अंततः अयोध्या लौटकर राम ने रामराज्य की
- अंततः अयोध्या लौटकर राम ने रामराज्य की स्थापना की।
- अंततः अयोध्या लौटकर राम ने रामराज्य की स्थापना की।
संदेश:
- राम अवतार यह सिखाता है कि सच्चा धर्म सत्य, कर्तव्य और मर्यादा में है।
- एक राजा का कर्तव्य केवल शासन करना नहीं बल्कि प्रजा के लिए आदर्श बनना भी है।
- यह अवतार हर मनुष्य को जीवन में कर्तव्यनिष्ठा, पारिवारिक मूल्यों और धर्म पालन का संदेश देता है।
👉 Vishnu Sahasranamam में भगवान राम का नाम “राम”, “राघव”, “राघुनंदन” के रूप में आता है।विष्णु सहस्रनाम और त्रेता युग अवतार
विष्णु देव (Vishnu deity) सृष्टि के पालक हैं और त्रेता युग(Treta Yuga) में इनके प्रमुख अवतार—राम (रामावतार) और वामन—माने जाते हैं (Treta Yuga Avatars)। विष्णु सहस्रनाम (Vishnu Sahasranamam, Vishnu Sahasra) का पाठ हजार नामों द्वारा विष्णु की महिमा का स्मरण है, जो मानसिक स्थिरता, सकारात्मकता व अध्यात्मिक उत्थान में मदद करता है। यह स्तोत्र दैहिक, दैविक, भौतिक संकटों से उबारने वाला, मोक्ष और कल्याणकारी माना गया है।त्रेता युग में भगवान विष्णु (Vishnu deity) ने तीन अवतार लेकर धर्म की रक्षा की और अधर्म का नाश किया।
- वामन अवतार ने सिखाया कि बुद्धि और नीति सबसे बड़ी शक्ति है।
- परशुराम अवतार ने दिखाया कि अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना भी आवश्यक है।
- राम अवतार ने हमें मर्यादा, आदर्श और धर्म का मार्ग सिखाया।
इन तीनों Vishnu avatars का स्मरण हमें जीवन में सही दिशा देता है।
सतयुग में भगवान् विष्णु के अवतार के बारे में जाने …