Navratri Day 2 – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-विधि और महिषासुर की उत्पत्ति की कथा

🌸 Navratri Day 2 – मां ब्रह्मचारिणी की कथा

नवरात्रि का दूसरा(Navratri Day 2) दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को समर्पित है।
यह दिन तप, संयम और साधना की शक्ति का प्रतीक है। इस दिन की कथा को समझते हुए हमें यह भी जानने को मिलता है कि कैसे महिषासुर और रक्तबीज जैसे असुरों का जन्म हुआ और धीरे-धीरे देवी दुर्गा के अवतरण की भूमिका तैयार हुई।

“पिछले दिन की कथा में आपने जाना Day 1 – मां शैलपुत्री…”

नवरात्रि के पर्व का दूसरा  दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना के लिए समर्पित है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है – तप और संयम का पालन करने वाली देवी। उनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है, जो साधना, आस्था और आत्मबल का प्रतीक है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को धैर्य, साहस और कठिनाइयों को सहने की शक्ति प्राप्त होती है।इस दिन भक्तजन सुबह स्नान करके कलश स्थापना करते हैं और देवी को चंदन, फूल और शक्कर (मिश्री) अर्पित करते हैं। इस दिन का शुभ रंग लाल माना गया है, और माता को मिश्री का भोग अर्पित करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।पौराणिक कथा के अनुसार, इसी चरण में असुर भाइयों रंभ और करंभ की तपस्या से आगे घटनाएँ घटित होती हैं। करंभ की मृत्यु इंद्रदेव के छल से हुई, जबकि रंभ को अग्निदेव से ऐसा वरदान मिला जिसने महिषासुर के जन्म की नींव रखी। अग्नि चिता से महिषासुर और रक्तबीज जैसे विकराल असुरों का जन्म हुआ। ये वही असुर थे जिन्होंने आगे चलकर देवताओं के लिए संकट खड़ा किया और जिनके अंत के लिए मां दुर्गा का अवतरण हुआ।इस प्रकार नवरात्रि का दूसरा दिन केवल मां ब्रह्मचारिणी की आराधना का ही नहीं, बल्कि महिषासुर की कथा की शुरुआत का भी प्रतीक है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक को संयम, तपस्या और आस्था की शक्ति मिलती है, जो जीवन के हर संकट से लड़ने में सहायक होती है।

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🕉️ मां ब्रह्मचारिणी कौन हैं?

  • ब्रह्मचारिणी का अर्थ है — ब्रह्म (तप) का आचरण करने वाली।

  • यह स्वरूप साधना, संयम, आस्था और तपस्या का प्रतीक है।

  • उनके एक हाथ में जपमाला और दूसरे हाथ में कमंडल रहता है।

  • इस दिन भक्तजन अपने जीवन में संयम और धैर्य की शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।


🌍 कथा का दूसरा अध्याय – महिषासुर और रक्तबीज का जन्म

पहले दिन की कथा में हमने पढ़ा कि असुर भाई रंभ और करंभ ने कठोर तपस्या की थी।

  • करंभ को इंद्रदेव ने मगरमच्छ बनकर मार डाला।

  • रंभ को अग्निदेव से वरदान मिला कि उसकी संतान इंद्र को पराजित करेगी।

🔥 इसके बाद रंभ का विवाह महिषी नामक राक्षसी से हुआ। लेकिन संघर्ष में रंभ की मृत्यु हो गई और उसकी पत्नी महिषी ने भी अग्निचिता में प्राण अर्पित कर दिए।

उस चिता की अग्नि से उत्पन्न हुआ एक विकराल असुर — महिषासुर
और अग्नि की ज्वालाओं से जन्मा एक और शक्तिशाली असुर — रक्तबीज

👉 यही असुर आगे चलकर देवताओं के लिए संकट बने और देवी दुर्गा के अवतरण का कारण बने।


🌸 नवरात्रि दिन 2 – पूजा विधि

  • प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  • कलश स्थापना कर मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।

  • माता को चंदन, फूल और शक्कर (चीनी) अर्पित करें।

  • दिन का शुभ रंग: लाल

  • विशेष भोग: शक्कर या मिश्री


🌟 संदेश

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मां ब्रह्मचारिणी के बारे में और जाने ..

मां ब्रह्मचारिणी हमें सिखाती हैं कि धैर्य, संयम और तपस्या से ही महान शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
उसी प्रकार रंभ और करंभ की तपस्या ने महिषासुर और रक्तबीज जैसे शक्तिशाली असुरों को जन्म दिया। लेकिन अंततः यही असुर मां दुर्गा के क्रोध और पराक्रम से नष्ट हुए।


🙏 कथा -सार

नवरात्रि का दूसरा दिन भक्त को आस्था और संयम की सीख देता है।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से जीवन में धैर्य, साहस और तपस्या की शक्ति जाग्रत होती है। साथ ही यह कथा हमें याद दिलाती है कि अधर्म चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो, धर्म और शक्ति का उदय होकर उसका अंत निश्चित है।

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