Bhagavad Gita Quotes: Positive Thinking और जीवन प्रबंधन के अनमोल विचार
भगवद गीता के श्लोक: आधुनिक जीवन में दुविधा और द्वन्द का समाधान

भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 6)
संस्कृत श्लोक इस प्रकार है –
(Bhagavad Gita Quotes)
न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो
यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः ।
यानेव हत्वा न जिजीविषामः
तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥ 2.6 ॥
भावार्थ (सरल हिन्दी में):
अर्जुन कहते हैं –
“हम यह भी नहीं जानते कि हमारे लिए क्या अच्छा होगा – हम जीतें या वे हमें जीत लें। जिनको मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही धृतराष्ट्र के पुत्र हमारे सामने खड़े हैं।”
प्रसंग-
कुरुक्षेत्र की भूमि पर अर्जुन युद्ध के लिये पहुँच कर अपने आप को दुविधा एवं द्वन्द से घिरा हुआ अनुभूत पाते है। यह श्लोक उस क्षण का वर्णन करता है जब अर्जुन युद्धभूमि में अपने ही सगे-सम्बन्धियों, गुरुओं और मित्रों को सामने खड़ा देखकर विचलित हो गया।
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जीतने पर भी दुख और विषाद है क्योंकि अपने ही परिजनो और गुरुओ की क्षति होगी ।
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हारने में अपमान का जीवन।
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इस स्थिती में जीत या हार, दोनों ही विकल्प व्यर्थ प्रतीत दिखाई दे रहा हैं।
गीता का यह संवाद सिर्फ़ कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि तक ही सीमित नहीं है।आज भी हर मनुष्य के कर्मभूमि,जीवन क्षेत्र के विभिन्न आयामों में युद्धक्षेत्र के रूप में खड़ा है।
आधुनिक जीवन में अर्जुन की दुविधा :

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निर्णय का द्वन्द्व (Decision Dilemma)-
आज के समय में जीवन में कई बार ऐसी स्थिति में आते हैं जहाँ हमें यह नहीं समझ आता कौन सा निर्णय लिया जाये,कौन-सा रास्ता सही है और कौन-सा गलत।विशेष रूप से व्यवसाय,करियर,नौकरी, सामाजिक व्यव्हार,रिश्तो और संबंधो के विषय में जब फंसा महसूस किया जाये। ऐसी स्थिती आपको मानसिक द्वन्द में तब उलझाती है जब आपको लगे की सही निर्णय कठिन हो तथा गलत आसान ।
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रिश्तों से जुड़े निर्णय-
यह स्थिती दिल और दिमाग से टकराव का उलझन है। युद्ध में अर्जुन के सामने उसके प्रियजन थे जिन्हें देख कर अर्जुन के मन की संवेदना और युद्धभूमि में संघर्ष का बोध अर्जुन को उचित निर्णय तक पहुचने नही दे रहा था ।इसका कारण सामाजिक मनुष्य के व्यव्हार से जुड़ा है मतलब जब विवेकशील मनुष्य अपनों, प्रियजनों,अपने रिश्तो से लड़ता है तो भावनात्मक पक्ष निर्णय पर ज्यादा हावी रहते है । ऐसे में कई बार सही निर्णय करने पर व्यक्ति को भावनात्मक और मानसिक पीड़ा होती है।
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कर्म का उद्देश्य समझ ना आना –
हम क्यों कर रहे हैं? जीवन के कई मौकों पर एक विवेक शील व्यक्ति इस भवर में जरुर उलझता है की ये सब करने से मुझे मिलेगा क्या या ये सब कर के मुझे क्या मिल गया । इस मानसिक उलझन में विवेकशील प्राणी अपने भावनाओ के आवेग ( Impulse of love and Emotion ) में उद्देश्य को समझ नहीं पाता ।
श्री कृष्ण का उपदेश
युध्भूमि पर अर्जुन को मानसिक दुविधा और द्वन्द में फंसा देख यथार्थ का ज्ञान देते है । जिसका अनुशरण निम्न श्लोको में कर सकते हैं -:
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आत्मा की अमरता
(Bhagavad Gita Quotes)
“न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।” (2.12)
अर्थात, आत्मा न कभी पैदा हुई, न कभी मरेगी। मृत्यु केवल शरीर की है।
👉 इसका तात्पर्य यह कि अर्जुन जिनके लिए शोक कर रहा है, वे वस्तुतः नष्ट नहीं होंगे।
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कर्तव्य (धर्म)
(Bhagavad Gita Quotes)
कृष्ण ने कहा –
“स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि।” (2.31)
अर्थात, अपने क्षत्रिय धर्म को देखकर तुझे डगमगाना नहीं चाहिए।
👉 जीवन में प्रत्येक व्यक्ति एक पद,कई रिश्तो ,कई परिस्थिथियो से जुडा रहता है। प्रत्तेक स्थिती में व्यक्ति एक धर्म से बंधा है यहाँ धर्म का मतलब अपने कर्तव्य से है न की पूजा पद्धति या किसी रीती से और कर्तव्य (धर्म) को निभाना ही श्रेष्ठ है।
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निष्काम कर्मयोग
(Bhagavad Gita Quotes)
सबसे महत्वपूर्ण उपदेश था –
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (2.47)
अर्थात, तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं।
👉धर्म अर्ताथ कर्त्यव्य को निश्चित करने के बाद कर्म करना आवश्यक है उसके परिणाम की चिन्ता में रहना व्यर्थ है जीत-हार की चिंता छोड़कर, अपने कर्तव्य का पालन करना ही सच्चा धर्म है।
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समत्व
(Bhagavad Gita Quotes)
“सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।” (2.38)
अर्थात, सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार को समान समझकर कर्म कर।
👉 विवेकशील व्यक्ति की यह श्रेष्ठता है की जीत हार में सामान भाव से ले कर अपना काम करे जो की उसे सही दिशा और सफलता की और ले जायेगा ,यही योग का वास्तविक स्वरूप है।
आज के जीवन में श्री कृष्णा के उपदेश की प्रासंगिकता
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कर्तव्य सर्वोपरि
किसी भी दुविधा की स्थिती में व्यक्ति अपने कर्त्तव्य की पहचान करे की मई जिस स्थिती,पद,सम्बन्ध में हु तो मेरा उसके प्रति कर्तव्य क्या है,जिसे श्री कृष्ण ने धर्म कहा है । कार्य क्षेत्र में आप जिस भी रूप में अपने आप को देखते है आप को उसी के कर्तव्य के अनुसार आप को कर्म करना चाहिए उदाहरण के लिए कई बार आप व्यावसायिक जीवन (professional life) में काम और निजी जीवन (personal life) में अपने अपने कर्तव्यों के कारण भी उलझन महसूस करेंगे ऐसे में आप को जीवन की महत्वपूर्णता पर धयान देना चाहिए।
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परिणाम की चिंता मत करो
आज हर क्षेत्र में लोग परिणाम-केन्द्रित हो कर सोचते है आज के समय की मांग भी है Goal Oriented Work परन्तु श्री कृष्ण कहते हैं – तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पर नहीं।
👉 अर्थात विचार कार्य को लेकर हो तो उचित है आप की सारी उर्जा (energy)कर्म मतलब काम पर होनी चाहिए कई बार परिणाम की चिन्ता में ही आपकी उर्जा आधी हो जाती है अतः श्री कृष्णा का यह विचार तनाव कम करता है और कार्य पर ध्यान केन्द्रित करता है।
- मानसिक समत्व
जीवन में हर विशेष कार्य को कुरुक्षेत्र के युधाभूमि की स्थिती में सोचे तो किसी कार्य को लेकर सही निर्णय तक पहुचने में समत्व अवश्यक है । सामान भाव से जीत -हार ,सफलता -असफलता को एक सामान रूप से स्वीकार कर कर्म करे। सफलता पर आप खुश और असफलता पर आप निराश जरुर हो सकते है पर वो कुछ समय के लिए होना चाहिए।
👉 इससे मन स्थिर रहता है और निराशा का बोझ नहीं होता।
निष्कर्ष
गीता का यह श्लोक (2.6) और श्री कृष्ण का समाधान केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं है।
यह हमें बताता है कि –
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जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष मन का द्वन्द्व है।
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समाधान यह है कि कर्तव्य को सर्वोपरि रखो, परिणाम की चिंता मत करो, और समभाव बनाए रखो।
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