भगवद गीता श्लोक 2.69(Bhagavad Gita Quote)
विषय -साधारण और ज्ञानी मनुष्य की दृष्टि
🌼परिचय
जीवन का असली रहस्य क्या है? क्या केवल धन, सुख और भोग ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है या आत्मा और परमात्मा की खोज ही सच्चा उद्देश्य है?
यह प्रश्न हर युग में मनुष्य के सामने खड़ा होता है।
भगवद गीता अध्याय 2 श्लोक 69 इसी रहस्य को प्रकाशित करता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस श्लोक के माध्यम से समझाया है कि संसार की दृष्टि और ज्ञानी पुरुष की दृष्टि एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होती है।
साधारण मनुष्य जो चीजें जीवन में सबसे बड़ी उपलब्धि मानता है, ज्ञानी उन्हें महत्वहीन मानता है। वहीं, जो चीजें ज्ञानी के लिए जीवन का सच्चा प्रकाश हैं, साधारण मनुष्य के लिए वे अंधकार के समान हैं।
यह श्लोक हमें चेतावनी देता है कि सोचें — हम किस ओर जाग रहे हैं? भोग की ओर या योग की ओर?
✨ श्लोक(Bhagavad Gita Quote in Sanskrit)

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।। 2.69।।
शब्दार्थ
- या निशा = जो रात्रि है
- सर्वभूतानाम् = सभी प्राणियों के लिए
- तस्याम् = उसमें
- जागर्ति = जागृत रहता है
- संयमी = संयमी (इन्द्रियनिग्रह वाला) पुरुष
- यस्याम् = जिसमें
- जाग्रति = जाग्रत रहते हैं
- भूतानि = सभी प्राणी
- सा निशा = वही रात्रि है
- पश्यतः = देखने वाले (ज्ञानी के लिए)
- मुनेः = मुनि का
सरल हिन्दी अनुवाद
“सभी प्राणियों के लिए जो रात्रि है वह संयमी मनुष्य के लिए दिन के समान है ।जिसमें सभी प्राणी जागते हैं, वह संयमी मनुष्य जो साधक अर्थात मुनि है उसके लिए रात्रि के समान होती है।”
📖 श्लोक का सार
यह गीता का एक शक्तिशाली Bhagavad Gita quote है।श्रीकृष्ण यहाँ दो प्रकार के मनुष्यों का भेद बताते हैं—
- साधारण मनुष्य – उसका जीवन केवल भौतिक और इन्द्रिय-सुखों (भोजन, धन, काम, मनोरंजन और विलासिता) को पूरा करने में बीतता है। उसके लिए यही जागरण है।
- ज्ञानी और संयमी मनुष्य – वह अपने विवेक का उपयोग कर इन्द्रियों को नियंत्रित करता है और आत्मा, आत्मज्ञान और परमात्मा की खोज करता है। उसके लिए यही जागरण है।
👉 जिस मार्ग पर सामान्य लोग दौड़ते हैं, ज्ञानी उससे दूर रहता है। और जिस राह पर ज्ञानी चलता है, सामान्य लोगों को वह अंधकारमय और नीरस लगता है।
🐦 पशु, पक्षी और सामान्य मनुष्य
भगवान ने मनुष्य को विवेक और बुद्धि दी है।
पशु-पक्षी अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं — भोजन, प्रजनन और निवास — में लगे रहते हैं।
- साधारण मनुष्य भी पशु -पक्षियों की तरह इन्ही सांसारिक कार्यों से आगे नहीं बढ़ पाता तथा अपने विवेक और चेतना का उपयोग आवश्यकताओं को और बड़ा और आकर्षक बना लेता है।
- जहाँ पक्षी घोंसला बनाता है, मनुष्य महल बना लेता है।
- जहाँ पशु केवल भूख मिटाने के लिए खाता है, मनुष्य विलासिता और स्वाद के लिए नित नई चीजें खोजता है।
- जहाँ पशु केवल प्रजनन के लिए संगिनी चुनता है, मनुष्य इसे भोग और मनोरंजन का साधन बना लेता है।
इस प्रकार मनुष्य अपने विवेक का उपयोग केवल विलास और सुख-साधन बढ़ाने में करता है। यही कारण है कि उसके जीवन में ईर्ष्या, द्वेष, प्रतिस्पर्धा और दुख बढ़ते जाते हैं।
🧘 विवेकशील और संयमी मनुष्य
वहीं दूसरी ओर, विवेकशील और आत्मसंयमी मनुष्य अपने जीवन को अलग दिशा देता है।
- वह जानता है कि इन्द्रिय-सुख क्षणिक और नश्वर हैं।
- वह अपने विवेक का प्रयोग आत्मा की खोज और परमात्मा के साक्षात्कार में करता है।
- उसके लिए आत्मज्ञान, ध्यान, साधना और सेवा ही जीवन का सच्चा लक्ष्य है।
ऐसे मनुष्य के लिए आत्मिक कार्य ही “दिन” है, जबकि भौतिक सुख-दौड़ उसके लिए “रात्रि” के समान है।
👉 यही कारण है कि गीता के यह उपदेश हमें “Positive Thinking Bhagavad Gita Quotes” की तरह प्रेरित करते हैं।
🌍 आधुनिक जीवन में अर्थ
आज का मनुष्य भी उसी दोराहे पर खड़ा है।
- अधिकांश लोग सुबह से रात तक केवल दौड़-भाग, नौकरी, व्यापार, सोशल मीडिया और भौतिक उपलब्धियों की चिंता में डूबे रहते हैं।
- उनके लिए महंगी कार, बड़ा घर, शानदार नौकरी या विदेश यात्रा ही जीवन का उजाला है।परंतु इस दौड़ का कोई अंत नहीं है।
- आपसी प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या एवं द्वेष और इनसे उपजा तनाव और मानसिक अशांति के परिणाम रूप में फलित होती है।
👉 इसके विपरीत, वह मनुष्य जिसने अध्यात्म को अपनाया है, अपने जीवन में सेवा, परमार्थ और कल्याण के कार्यों को स्थान दिया है, वही वास्तव में प्रकाशमय जीवन जी रहा है।वही व्यक्ति जो अध्यात्म और आत्मसंयम को अपनाता है, वह इस अंतहीन दौड़ से मुक्त होकर शांति पाता है।
📌 एक दृष्टांत (Story Example)
कल्पना कीजिए—
रात के समय पूरा शहर सो रहा है। लोग थके हुए बिस्तरों में हैं। लेकिन एक छात्र अपनी परीक्षा की तैयारी कर रहा है।
- उसके लिए यह “रात” वास्तव में “दिन” है।
- जबकि बाकी सबके लिए यही समय गहरी नींद का है।
ठीक इसी प्रकार, ज्ञानी पुरुष आत्मज्ञान की साधना में जाग्रत रहते हैं जबकि बाकी संसार भोग और अज्ञान की नींद में सोया होता है।इस सामान्य दृष्टान्त से भगवत गीता और Bhagavad Gita Quote की प्रासंगिकता और महत्त्व समझ सकते है ।
🎯 व्यावहारिक संदेश
गीता का यह श्लोक हमें समझाता है कि—
- केवल भौतिक दौड़ में लगे रहना हमें पशु-पक्षियों से अलग नहीं करता।
- हमें अपने विवेक का प्रयोग आत्मिक खोज, आत्मसंयम और सेवा में करना चाहिए।
- तभी हम जीवन के वास्तविक सुख — आत्मिक सुख — को प्राप्त कर सकते हैं।
✅ निष्कर्ष
Bhagavad Gita quotes केवल आध्यात्मिक ग्रंथ के शब्द नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला हैं।
गीता श्लोक 2.69 हमें सिखाता है कि —
- सामान्य मनुष्य के लिए भोग, इन्द्रिय-सुख और विलासिता ही “दिन” है।
- परंतु ज्ञानी और संयमी पुरुष के लिए यही सब “रात्रि” है।
- ज्ञानी का “दिन” है— आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार और परमात्मा की खोज।
- यही मार्ग जीवन को प्रकाशमय और सार्थक बनाता है।
👉 इसलिए हमें चाहिए कि हम विवेक का प्रयोग करते हुए भोग से योग की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ें। यही जीवन का सच्चा जागरण है।