🌸 मां शैलपुत्री( Shailaputri )की पूजा, कथा और महत्व | NAVRATRI DAY-1
नवरात्रि(NAVRATRI DAY 1)का पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना के लिए समर्पित है। शैलपुत्री का अर्थ है “पर्वतराज हिमालय की पुत्री”। माता का यह रूप शक्ति का प्रथम चरण माना जाता है, जो साधक को स्थिरता, श्रद्धा और अध्यात्म की ओर अग्रसर करता है। उनके हाथ में त्रिशूल और कमल होता है तथा वे नंदी बैल पर सवार रहती हैं। नवरात्रि की शुरुआत इन्हीं की पूजा से होती है, इसलिए यह दिन विशेष महत्व रखता है।
इस दिन भक्तजन सुबह स्नान कर कलश स्थापना करते हैं और मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना करते हैं। उन्हें सफेद रंग अत्यधिक प्रिय है, अतः भक्त माता को सफेद वस्त्र, सफेद पुष्प और घी का भोग अर्पित करते हैं। इस दिन का विशेष भोग घी से बनी वस्तुएँ हैं। माना जाता है कि मां शैलपुत्री की उपासना से साधक को मानसिक शांति, धैर्य और जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है।
नवरात्रि की कथा के अनुसार, यहीं से मां दुर्गा के अवतरण की नींव रखी गई थी। असुर भाइयों रंभ और करंभ की तपस्या, अग्निदेव का वरदान और आगे महिषासुर की उत्पत्ति का प्रसंग इसी दिन से जुड़ा हुआ है। यही कथा आगे चलकर महिषासुर मर्दिनी की महागाथा बनती है।
इस प्रकार नवरात्रि का पहला दिन केवल पूजा का आरंभ नहीं, बल्कि शक्ति के जागरण और दुर्गा अवतरण की कथा की शुरुआत भी है। मां शैलपुत्री की कृपा से भक्त का जीवन नई ऊर्जा और विश्वास से भर जाता है।
✨ प्रस्तावना
नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री( Shailaputri )स्वरूप को समर्पित है।
यह दिन शक्ति की साधना और देवी के अवतरण की कथा की शुरुआत का प्रतीक है।
आज हम जानेंगे — मां शैलपुत्री का महत्व और साथ ही वह पौराणिक प्रसंग, जिसने मां दुर्गा के प्राकट्य की नींव रखी।
🕉️ मां शैलपुत्री कौन हैं?
शैलपुत्री का अर्थ है — पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
यह रूप शक्ति का सबसे प्रथम और पवित्र स्वरूप है।
उनके हाथ में त्रिशूल और कमल रहता है तथा वे नंदी बैल पर सवार होती हैं।
नवरात्रि की शुरुआत इन्हीं की आराधना से होती है।
👉 शैलपुत्री हमें जीवन में स्थिरता, धैर्य और श्रद्धा प्रदान करती हैं।

माँ शैलपुत्री के बारे में और जाने
🌍 कथा का प्रारंभ – असुर भाइयों की तपस्या
बहुत समय पहले सतयुग में असुर कुल के दो भाई थे — रंभ और करंभ।
दोनों निस्संतान थे और संतान प्राप्ति के लिए व्याकुल रहते थे।
करंभ ने झील में जल डूबकर तपस्या शुरू की।
रंभ ने अग्नि देव की आराधना के लिए अग्नि का घेरा बनाकर उसमें ध्यान लगाया।
⚡ इंद्र का भय
देवताओं के राजा इंद्र को लगा कि असुर वरदान पाकर देवताओं का अहित करेंगे।
उन्होंने मगरमच्छ का रूप धारण कर करंभ की हत्या कर दी।
रंभ को यह समाचार अपनी तपस्या के बल से मिल गया। वह अत्यंत दुखी होकर आत्महत्या करने ही वाला था कि अग्निदेव प्रकट हुए।
🔥 अग्निदेव का वरदान
अग्निदेव ने रंभ को वरदान माँगने को कहा।
रंभ ने कहा —
👉 “मेरा संतान इतना शक्तिशाली हो कि वह इंद्र को परास्त कर सके और तीनों लोकों पर राज्य करे।”
अग्निदेव ने अनिच्छा से यह वरदान दे दिया और कहा कि यह संतान उसी स्त्री से उत्पन्न होगी जो उससे प्रेम करेगी।
यही वरदान आगे चलकर महिषासुर के जन्म और फिर मां दुर्गा के अवतरण का कारण बना।
🌸 नवरात्रि दिन 1 – पूजा विधि
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
कलश स्थापना करें और मां शैलपुत्री का पूजन करें।
माता को सफेद फूल, घी और चावल अर्पित करें।
दिन का शुभ रंग: सफेद
विशेष भोग: घी से बनी चीज़ें
🌟 संदेश

मां शैलपुत्री के बारे में और जाने …
नवरात्रि के पहले दिन की कथा हमें यह सिखाती है कि जब अधर्म और अत्याचार बढ़ते हैं, तो ईश्वर व्यवस्था करता है।
रंभ और करंभ की तपस्या से प्रारंभ हुई यह कथा अंततः मां दुर्गा के अवतरण की ओर बढ़ती है।
🙏 कथा -सार
मां शैलपुत्री की उपासना से हमें आस्था और धैर्य की शक्ति मिलती है। यही शक्ति आगे चलकर मां दुर्गा को अवतरित करती है, जो महिषासुर जैसे अत्याचारी का अंत करती हैं।
“कल हम जानेंगे Day 2 – मां ब्रह्मचारिणी की कथा…”
जय माता दी।