Navratri Day 3: मां चंद्रघंटा ( Maa Chandraghanta )की पूजा, महत्व और महिषासुर को मिला वरदान

🌸 Navratri Day 3 – मां चंद्रघंटा ( Maa Chandraghanta )की पूजा-विधि ,महत्त्व


नवरात्रि का तीसरा(Navratri Day 3) दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की उपासना के लिए समर्पित है। मां चंद्रघंटा( Maa Chandraghanta ) के मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की स्वर्णिम घंटा है, जिसके कारण उन्हें यह नाम प्राप्त हुआ। यह स्वरूप शक्ति, साहस और पराक्रम का प्रतीक है। माता सिंह पर आरूढ़ होकर दस हाथों में विविध अस्त्र-शस्त्र धारण किए रहती हैं। उनकी आराधना से साधक को भयमुक्ति, आत्मविश्वास और युद्ध जैसी कठिन परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति मिलती है।

नवरात्रि के इस दिन भक्तजन पीले वस्त्र धारण करते हैं और माता को दूध या दूध से बने पकवान अर्पित करते हैं। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा से घर में शांति, सुख और समृद्धि का वास होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, इसी चरण में महिषासुर ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया। जब ब्रह्मा ने उसे अमरता का वरदान देने से इंकार कर दिया, तो महिषासुर ने यह वरदान माँगा कि न तो कोई देव और न ही कोई असुर उसे मार सके। महिषासुर ने स्त्रियों को दुर्बल समझा और उन्हें अपनी गणना में शामिल नहीं किया। यही अहंकार आगे चलकर उसके अंत का कारण बना। ब्रह्मदेव ने उसे चेताया कि उसका वध एक स्त्री के हाथों होगा।

इस प्रकार नवरात्रि का तीसरा दिन केवल मां चंद्रघंटा की आराधना का ही नहीं, बल्कि महिषासुर की घमंडी भूल और देवी दुर्गा के प्राकट्य की नींव का भी प्रतीक है।

“पिछले दिन की कथा में आपने जाना Day 2  – मां ब्रम्हचारिणी……..

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नवरात्रि का तीसरा दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की आराधना के लिए समर्पित है।
मां के मस्तक पर अर्धचंद्र के आकार की स्वर्णिम घंटा जैसी आकृति है, जिस कारण उन्हें “चंद्रघंटा” कहा जाता है। उनका यह स्वरूप युद्धप्रिय, पराक्रमी और दुष्टों के विनाश का प्रतीक है।
इसी दिन की कथा से जुड़ा है महिषासुर का ब्रह्मदेव से मिला भयानक वरदान, जिसने देवताओं को पराजय के संकट में डाल दिया।


🕉️ मां चंद्रघंटा कौन हैं?

  • मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं, जिनमें विविध अस्त्र-शस्त्र सुशोभित हैं।

  • वे सिंह पर आरूढ़ होकर दुष्टों का संहार करती हैं।

  • उनके मस्तक पर चमकती अर्धचंद्र घंटा उन्हें विशेष पहचान देती है।

  • उनका स्वरूप साहस, पराक्रम और उग्रता का प्रतीक है।

👉 मां चंद्रघंटा की आराधना से भक्त को अदम्य साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।


🌍 कथा का तीसरा अध्याय – महिषासुर को वरदान

पहले दिन और दूसरे दिन की कथा में हमने जाना कि अग्निदेव के वरदान से महिषासुर और रक्तबीज का जन्म हुआ।
अब तीसरे दिन की कथा में आता है सबसे महत्वपूर्ण मोड़।

  • महिषासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया।

  • वरदान में उसने अमरता माँगी।

  • ब्रह्मा ने कहा कि अमरत्व संभव नहीं है।

तब महिषासुर ने चालाकी से यह वरदान माँगा:
👉 “न तो कोई देव और न ही कोई असुर मुझे मार सके।”

महिषासुर ने स्त्रियों को कमजोर समझा और उनकी शक्ति को नज़रअंदाज़ कर दिया।
ब्रह्मा ने उसे यही वरदान दिया और चेताया कि उसका वध किसी स्त्री के हाथों होगा।

🔥 यही वरदान आगे चलकर उसके अंत का कारण बना और मां दुर्गा के प्राकट्य की नींव रखी।


🌸 नवरात्रि दिन 3 – पूजा विधि

  • सुबह स्नान कर पीले या सुनहरे वस्त्र धारण करें।

  • कलश स्थापना कर मां चंद्रघंटा का ध्यान करें।

  • माता को दूध और उससे बनी मिठाइयाँ अर्पित करें।

  • दिन का शुभ रंग: पीला (Yellow)

  • विशेष भोग: दूध और खीर


🌟 संदेश

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मां चंद्रघंटा के बारे में और जानिए ….

मां चंद्रघंटा ( Maa Chandraghanta )का स्वरूप हमें सिखाता है कि जीवन में भय और संकट से लड़ने के लिए साहस और दृढ़ता आवश्यक है।
महिषासुर के वरदान की कथा यह याद दिलाती है कि जब भी अहंकार और अन्याय बढ़ेगा, तब शक्ति रूपिणी देवी उसका अंत अवश्य करेंगी।


🙏 कथा -सार

नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा की उपासना और साहस की साधना का प्रतीक है।
भक्तजन इस दिन मां की पूजा कर अपने जीवन से भय और बाधाओं को दूर कर सकते हैं।
महिषासुर के वरदान की यह कथा हमें चेताती है कि अधर्म चाहे कितना ही बलवान क्यों न हो, शक्ति और सत्य के आगे उसका अंत निश्चित है।

“कल हम जानेंगे Day 4 – मां कूष्मांडा की कथा…”

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