क्यों विशेष है श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 SRAWAN PUTRADA EKADASHI 2025

SRAWAN PUTRADA EKADASHI 2025(श्रावण पुत्रदा एकादशी )

                                                                श्रावण मास उर्जा ,उत्पत्ति और सृजन का काल है कहते है की भगवन हरी इस काल में शयन में चले जाते है । वास्तव में वेदों को देखे तो 33 कोटि अर्थात 33 प्रकार के देवताओ में 12 आदित्य मतलब सूर्य के 12 मास के बारह रूप में एक हरी है जो सावन काल में बदलो से छीप जाते है अर्थात भगवन हरी का तेज प्रकृति जगत में कम पड़ता है यह हरी के शयन का रूपक है । सावन के काल में मन, विकार, चित्त से शुद्ध हो कर व्रत ,उपवास करने का महत्त्व जीवन और सृजन के भाव में समझ सकते है।सावन मास की  इसी अध्यात्मिक यात्रा में श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्त्व समझते हैं –

    श्रावण पुत्रदा एकादशी                                          (SRAWAN PUTRADA EKADASHI 2025)

श्रावण पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी का पुत्र प्राप्ती  या संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। यह श्रावण मास में आता है इसलिए इसे श्रवण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है, वर्ष में यह एकादशी दो बार आता है एक पौष मास एकादशी में और एक दूसरा श्रावण मास एकादशी ।  इस बार यह एकादशी 2025 में श्रावण मास में अगस्त 5 तारीख दिन मंगलवार को होगा।

एकादशी का यह उपवास भगवान नारायण अर्थात विष्णु को समर्पित है इस उपवास को 24 घंटे के लिए रखा जाता है इस उपवास में निर्जला सजला और सफला तीनों विधि  से रखा जा सकता है-

निर्जला -अर्थात जिसमें हम जल भी  ग्रहण नहीं कर सकते हैं।

सजला  -अर्थात जिसमें जल ग्रहण किया जा सकता हैं।

सफला -अर्थात जिसमें जल के साथ हम फल भी ग्रहण कर सकते हैं।

व्रत विधि

एकादशी का उपवास करने के लिए दशम तिथि  के दिन ही व्रत रखने वाले को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा ब्रम्हचर्य  का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे । भगवान के समक्ष संकल्प करने के बाद  ही पूजा  विधि का नियम करना चाहिए। आइये जानते है क्या है श्रावण पुत्रदा एकादशी की पूजा विधि.. 

पूजा विधि

 

sawan putrada ekadashi puja

  • एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े पहन कर भगवान के समक्ष अपने मंदिर या पूजा कक्ष में सुखाशन में बैठे।

  • पीले रंग के आसन में लक्ष्मी नारायण की मूर्ति स्थापित करें।

  • भगवान की मूर्ति को जल या पंचामृत या फिर कच्चे दूध से स्नान कराये ।

  •  स्नान कराकर स्वच्छ कपड़े में पोंछ कर  स्थापित करें।

  • अपनी दैनिक पूजा विधि से पूजा करे और संकल्प का स्मरण करते ध्यान लगायें ।

  • लक्ष्मी नारायण भगवान की मंगला आरती करें।

  • रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए जागरण कर सकते है।

व्रत कथा

यह कहानी द्वापर युग की महिष्मति राज्य की है जहां पर महिजीत नाम का राजा था ,जो बड़ा ही शांत एवं धार्मिक प्रवृत्ति का था । लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से वहां परेशान रहता था।  राजा  का मानना था कि जिसके पास संतान न हो उसका लोक और परलोक दोनों ही दुख दायक होता है।

पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किया परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।  वृद्धावस्था आते देखकर राजा ने अपने मंत्री तथा प्रजा जनों को बुलाया और कहा है ,प्रजाजनों  मेरे खजाने में अन्य से कमाया हुआ धन नहीं है और ना ही मैंने कभी ही देवताओं और ब्राह्मणों का धन छीना है।  ना ही मैं किसी दूसरे की धरोहर ली है । प्रजा को हमेशा पुत्र के समान पलता रहा और दोषियों को भी मैं बालकों की तरह दंड दिया ।

यह बात सुनकर राजा के सभी शुभचिंतकों ने राजा की परेशानी महामुनि लोमस ऋषि को बताई । लोमश ऋषि ने उन्हें  बताया कि राजा पूर्व जन्म के एक अत्याचारी वैश्य थे।  एकादशी के दिन वह दोपहर के समय पानी पीने जलाशय पर पहुंचा जहां उसके गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीने से रोक कर स्वयं पानी पीने लगे।  ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था, अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फल से महिजीत  इस  जन्म में राजा तो बने लेकिन उसके एक पाप के कारण राजन को  संतान सुख प्राप्त नहीं  हुआ है ।

महामुनि लोमश ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को व्रत रखें और उनके पुण्य राजा को दे दे तो राजा को संतान रत्न की प्राप्ति हो जाएगी।लोमश ऋषि के निर्देशानुसार प्रजा  के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत किया तो इस व्रत के पुण्य का प्रताप से कुछ समय के बाद राजा को एक तेजस्वी और विद्वान पुत्र की प्राप्ति हुई तभी से यह श्रवण एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाने लगा।

 

hari ki puja putrada ekadashi

 

पारण का समय

उदयातिथि के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का पारण का समय  6 अगस्त को प्रातः 5:45 से 8:26 तक तथा पारण के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दोपहर 2:08 पर होगा ।

 

धार्मिक महत्व

श्रवण पुत्रदा  एकादशी भगवान श्री हरि को प्रसन्न करने का बहुत ही विशेष दिन होता है । इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु अति  प्रसन्न होते हैं और संतान प्राप्ति का वार देते हैं।पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के कष्ट और पापों से मुक्ति मिलती है।  इस व्रत को करने से सही प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।इस व्रत के प्रभाव  से संतान धर्म परायण दीर्घायु और बुद्धिमान होता है ।

पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार राजा माहिजीत को कोई भी संतान नहीं थी लोमस ऋषि के अनुसार उन्होंने श्रवण पुत्र थे एकादशी का व्रत रखा जिसके फल स्वरुप राजा को संतान रन की प्राप्ति हुई ।भगवान श्री कृष्ण द्वारा वर्णन भगवान श्री कृष्णा ने स्वयं ही पुत्रदा एकादशी श्रवण पुत्र थे एकादशी का महत्व भीम को बताया था।

 

 

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